चाटुकारिता का रस !!

चाटुकारिता शब्दावली का कोई नया शब्द नही है बल्कि पुराने समय से चली आ रही एक रोगी अवस्था है जिसमे इंसान की सारी सुध-बुध केवल एक ही बात पर निर्भर करती है कि किस तरह से पात्र से बंधे रहे, पात्र से मतलब स्वामी है जिसके लिए चाटुकारिता की जा रही है।

जैसे जैसे समय बदला है वैसे वैसे इसके मायने भी बदले है, किसी समय में एक निश्चित स्वार्थ के लिए चाटूकारिता की जाती थी पर आज के समय मे इसका कुछ और महत्व बन गया है, अब स्वार्थ के अलावा हानि पहुचना ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है।

पहले केवल स्वामी के विस्वास के लिए बातो में चाटूकारिता रस का स्वाद डाल कर चाटूकारिता की जाती थी, अब ये ऐसी अवस्था मे है कि अगर किसी का सबकुछ खत्म हो भी हो जाय तो चाटुकारो को कोई फर्क नही पड़ता है और पूरे तन मन से ये कार्य किया जाता है। आज के समय मे आपके ज्ञान या गुणवत्ता का कोई महत्व नही है, हा अगर आपके अंदर चाटुकारी का गुण है तो आपको किसी और गुण की आवश्यकता नही है।

आज कुछ बड़े बड़े राजनीतिक व निजी संगठन एवं संस्थान अपने अस्तित्व को बचाने के लिए कार्यरत है, वो हर तरह से विश्लेषण कर रहे है कि आखरी ऐसा क्या हुआ है की संगठन में जिसके कारण वो अपनी छाप नही छोड पा रहे है। सारा विश्लेषण कर लिया पर उन्हें असली कारण पता होने के बाद भी उस पर पर्दा डाल रहे है। असली कारण है गुणवत्ता को महत्व न दे कर अयोग्य व चाटूकारिता को वरीयता देना।

ये प्रथा किसी एक जगह पर नही अपितु हर जगह पर है और इसी प्रथा की वजह से ज्ञान और गुणवत्ता का शोषण किया जाता है फिर चाहे वो निजी संस्थान हो या सरकारी, हर जगह गुणवत्ता का शोषण चाटुकारी रूपी प्रथा से किया जाता है, वैसे तो ये एक समस्या हैं, पर इसे समस्या न कह कर प्रथा कहना ज्यादा सही रहेगा क्योंकि समस्याओ का निवारण तो हो सकता है पर चाटूकारिता का नही।

उदहारण के लिए युवराज में भी मानक ज्ञान का बहुत बड़ा अभाव है और वो सरकंडो की लकड़ी से भवन निर्माण की बात करते है जब उनकी इस तरह की बातों को उनके उनके संतरी प्रयोगतम सिद्ध करते है तब ये चाटूकारिता की परम सीमा तक पहुच जाते है, समझ गए होंगे कि ये उदाहरण कहा का है। 

ये भी एक दौर है जहाँ पर कुछ विशेष तरह की चाटुकारी है, पर ये भी सत्य है की ये कि कोई नई बात नही है और न ही कभी पुरानी होगी, समय के साथ साथ इसके रूप में जरूर बदलाव आएगा पर ये कभी खत्म न होने वाली एक अमृतमयी प्रथा है। जिसका सीधा सा मतलब है की कम काम मे ज्यादा लाभः।


इस विषय के ऊपर पूरी किताब लिखी जा सकती है पर रचनात्मक तथ्यों में समझना ही सही है। ये बात तो निश्चित है कि बुराई कैसी भी हो उसका अंत भी तय है, चाटुकारो का दौर तो हमेशा रहेगा पर इनकी भी समय सीमा है, फिर बस एक चाटुकार खत्म तो दूसरा आ जाता है।

इसके अंत मे सिर्फ एक ही बात है कि कोशिश की जाय कि सही को सही और गलत को गलत कहने का साहस सभी मे होना चाहिए। गलत भावना से किया कार्य कभी फलीभूत नही होता है। 

मिलते है अगले ब्लॉग में कुछ नई विचारो के साथ।।



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